नाम प्रांतीय गोरखाली समाज परन्तु 03 साल बाद भी पदाधिकारी कोरबा जिले से
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कोई भी समाज का जब गठन प्रांतीय स्तर पर होता है तो इसके पदाधिकारी अलग अलग जिले से होते है , अगर राष्ट्रिय स्तर पर गठन करना है तो अलग अलग राज्यों के पदाधिकारी बनते है , यह शासन का नियम है | मगर कोरबा जिले के प्रांतीय गोरखाली समाज ने नया कारनामा करके शासन को गुमराह कर रहे है | विधि के अनुसार अगर नाम प्रांतीय गोरखाली समाज रखा है तो सभी जिले के गोरखाली को पद देना चाहिए तब ही वह राज्य का प्रतिनिधित्व माना जायेगा | मगर कोरबा जिला के प्रांतीय गोरखाली समाज ने तीन साल बाद भी किसी भी जिले में कोई सदस्य नही बनाया कुछ बने भी है तो उनको कोई पद नही दिया | सब कोरबा वाले ही पद में 03 साल पूर्व थे अब फिर एक ही जिला वाले दावेदारी कर रहे है और नाम प्रांतीय गोरखाली समाज रख कर अनुदान ले कर शासन को गुमराह कर रहे है ,जो की अपराध की श्रेणी में आता है |
बड़े मजे की बात यह है की प्रांतीय गोरखाली समाज के नाम से चुनाव भी करवा रहे है वोट दुसरे जिले वाले नहीं देंगे कोरबा वाले ही देंगे और सब कोरबा वाले ही पद में 03 साल पूर्व थे अब फिर दावेदारी कर रहे है , है न मजे की बात प्रांतीय गोरखाली समाज के सभी पदाधिकारी एक ही घर के हो तो भी अतिशोक्ति नही होगी |
कोरबा के कुछ लोग पैसे वाले है इस लिए वो अपने पैसे के बल पर समाज पर एकाधिकार करके रखे है ताकि गरीब गोरखा चुनाव ही नही लड सके |उनका नियम यह है की साधारण मेम्बरशिप वार्षिक 600/ है वो केवल वोट दे सकता है वह चुनाव नही लड़ सकता | चुनाव लड़ने 2500/आजीवन मेम्बरशिप देना पड़ेगा साथ ही 3000/ अलग से जमा करना पड़ेगा इतना तो विधायक का नही है | सब वोटर और पदाधिकारी एक ही जिले के और एक स्थान के है , नेताओ को चुनाव जितने इनसे टिप्स लेना चाहिए |
प्रांतीय गोरखाली समाज के पदाधिकारीयो के कारनामे यही ख़तम नही होता गोरखाली समाज के अधिकांश लोग गरीब है उनमे एक विकास तमांग है जो पेशे से ड्रायवर है उनको समाज से निष्काषित किया गया वो बोले की मुझे समाज से निकाल दिया मै ड्रायवर हूँ मुझे समाज की जरूरत ज्यादा होती है, क्युकी मेरा पेशा खतनाक है ,मैने पूछा कारण क्या था उन्होंने बताया की समाज में जो मेम्बरशिप हम इसलिए जमा करते है की हमारे दुःख में काम आये | परन्तु समाज के लोगो ने समाजिक मिलन के नाम पर पिकनिक गये और मात्र 32 लगभग परिवार और उनके मित्रो ने बकरा भात का पार्टी किया और समाज के फण्ड से 40,000/ खर्च कर दिया | उक्त फण्ड में लगभग 150 परिवारों का मेम्बरशिप था | उक्त 150 लोग जाते पिकनिक पर उनके शब्दों में सामाजिक मिलन पर तो कोई आपत्ति नही होती उसमे मात्र कुछ लोग जाकर इतनी बड़ी राशि खर्च करना कोई दूसरा समाज वाले नही करेंगे ये केवल प्रांतीय गोरखाली समाज कर सकता है |
विदित हो पूर्व में भी उक्त 150 लोग जाते पिकनिक पर उनके शब्दों में सामाजिक मिलन पर तो कोई आपत्ति नही होती उसमे मात्र कुछ लोग जाकर इतनी बड़ी राशि खर्च करना कोई दूसरा समाज वाले नही करेंगे ये केवल प्रांतीय गोरखाली समाज कर सकता है |
पूर्व में छतीसगढ़ नेपाली समाज का गठन किया गया था कुछ साल तक लोगो ने मेम्बरशिप दिया उस राशि का उपयोग सामाजिक मिलन के नाम पर खाने पीने में खत्म कर दिए तीजा का प्रोग्राम होटलों में रखे गरीब रोजी मजदूरी वाला नेपाली कैसे वहन करेगा मेम्बरशिप ही देना बंद कर दिया बाद में उसका पंजीयन ही निरस्त हो गया | अब फिर जिनके कार्यकाल में पंजीयन निरस्त हो गया था फिर प्रांतीय गोरखाली समाज की निर्विरोध प्रदेश सचिव बन गई है इसका भी वही अंजाम होगा जो पूर्व में छतीसगढ़ नेपाली समाज का हुआ ,उसका कोई हिसाब किताब किसी भी मेम्बर को नही बताया गया | और बड़े मजे की बात यह भी है की सचिव और कोषाध्यक्ष को अध्यक्ष और फाउंडर गौतम जी ने नोटिस भेजा रिमाइनडर भी भेजा उसका कोई जवाब नही दिया गया और फाउंडर मेम्बर को ही हटाने एक ही जिले से पांच पदों पर दावेदारी किया गया | फाउंडर प्रेसिडेंट बेचारे कुछ नही कर पा रहे है |
सचिव प्रेसिडेंट पर भारी पड़ा |